
फाइल फोटो
सतना शहर के अधिकांश काम अनुमानित लागत से कम लागत पर पूरे हो रहे हैं। आश्चर्य है गुणवत्ता के साथ यह समझौता नियमानुसार चल रहा है। जिम्मेदार भी यही मानतें कि यही सिस्टम है। लेकिन बिलो रेट पर टेंडर स्वीकृत और उसके बाद घटिया काम का खामियाजा आम जनता भुगत रही है।
टीम ने इसकी पड़ताल की तो पता चला कि, निर्माण क्षेत्र से जुड़े जानकारी के मुताबिक शहर की ज्यादातर सड़क सीमेंटीकरण निर्माण, भवन, नाली और तालाब सौंदर्यीकरण के कार्यों में बिलो राशि टेंडर हुआ है। काम शुरू भी हो गए हैं। गुणवत्ता बिल्कुल भी दिखाई नहीं दे रही है। इस सिस्टम को बदलने की जरुरत है। लेकिन जिम्मेदार इसके लिए संजीदा नहीं हैं।
ठेकेदारों के बीच हो रही प्रतिस्पर्धा के कारण ठेकेदार अनुमानित लागत से कम पर टेंडर भरते हैं। जिसका रेट सबसे कम, निगम की निविदा समिति की अनुशंसा के आधार पर एम.आई.सी. की स्वीकृति के बाद निगम उसे काम देता है। आमतौर पर नगर निगम, सतना में में निर्माण कार्य मूल लागत से 20 से लेकर 30 फीसदी तक तक कम है।
काम पूरा होने के बाद बिल भुगतान के लिए ठेकेदार करीब 15 परसेंट राशि निगम के कर्मचारी-अधिकारियों तक रिश्वत के रुप में बांटता है। कुल इस्टीमेटेड रेट का 40-45 फीसदी हिस्सा सिर्फ बिलो राशि और कमीशनखोरी में खर्च हो जाता है। अब ऐसे में ठेकेदार गुणवत्ता के साथ कैसे काम कर सकता है यह एक बड़ा सवाल है।
बिलो रेट के गणित को आप ऐसे समझिए
कार्य की वास्तविक दर 1,00,00,000/-करोड़ रुपए में सड़क सीमेंटीकरण करना है। ठेकेदार 30% कम रेट पर टेंडर डाला। लोएस्ट होने पर काम मिल जाएगा।
अब कार्य की दर 1,00,00,000 – 30,00,000 = 70,00,000/-
अब ठेकेदार को टेंडर रेट की 3 परसेंट परफारमेंस गांरटी जो कि, 3 लाख होती है जमा करनी होगी। 10 परसेंट से अधिक बिलों में रेट होने के कारण 20 परसेंट अतिरिक्त परफारमेंस गांरटी जमा करनी होगी जो कि 20 लाख होती है इस तरह से ठेकेदार द्वारा 23 लाख की परफारमेंस गारंटी जमा की जायेगी।
अब कार्य की दर 70,00,000 – 23,00,000 = 47,00,000/-
ठेकेदार द्वारा 70 लाख का बिल प्रस्तुत होगा जिसमें से और कटौती होना हैः-
7% SD = 4,90,000
2% IT = 1.40,000
2% IGST = 1, 40,000
1% LWF = 70,000
इस तरह से कटौती कुल 8,40,000 की होगी
अब इसके बाद 38.6 लाख रुपए में एक करोड़ का काम होगा। इसी 38.6 लाख रुपए में कमीशन बंटेगा। ठेकेदार अपना 20 फीसदी मुनाफा भी निकालेगा।
बिलो रेट का प्रतिशत ज्यादा हो तो मैनेज करना मुश्किल
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक ठेकेदार ने बताया कि, ठेकेदारों के बीच कंपीटिशन की वजह से बिलो राशि पर टेंडर होता है। 5-10 परसेंट ब्लो राशि हो तो काम हो जाता हैै। अगर 15 से 20 या उससे अधिक 30 परसेंट बिलो हो तो काम करना मुश्किल हो जाता है। निर्माण कार्य की क्वालिटी भी ठीक नहीं रहती। सिर्फ खानापूर्ति होती है।
सड़कों की जांच व मॉनीटरिंग प्रॉपर हो तो गड़बड़ी की संभावना कम रहती है। लेकिन 5ः से अधिक ब्लो राशि पर काम दिया जाता है तो क्वालिटी भगवान भरोसे रहती है। ऐसी स्थिति में ठेकेदार या तो काम छोड़ देता है या फिर खुद के फायदे के लिए क्वालिटी को दरकिनार कर निर्माण करता है। ऐसी स्थिति में ब्लो राशि पर काम देना ही नहीं चाहिए।
यदि प्रशासन की इस तरह की लचर व्यवस्था बनी रहेगी तो वो दिन दूर नहीं जब सारा शहर नियमों के कुचक्र में बरबाद हो चुका होगा। अब बाकी के विचार आपके उपर है। अब ईश्वर बचाये एैसी व्यवस्था से।