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महिलाओं से जुड़े वो 2 कानून जिनपर सुप्रीम कोर्ट ने भी उठाए सवाल, जानें- इन्हें क्यों माना जाता है सबसे ज्यादा दुरुपयोग होने वाला

दिल्ली,। सुप्रीम कोर्ट ने महिला अपराध से जुड़े दो कानूनों पर बड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498्र और घरेलू हिंसा कानून को सबसे ज्यादा दुरुपयोग किए जाने वाले कानूनों में से एक बताया है. जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने गुजारा भत्ता से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की.जस्टिस गवई ने इस दौरान ऐसे ही एक पुराने मामले का जिक्र करते हुए कहा कि इस तरह के मामलों में छुटकारा मिलना सबसे सही चीज है.जस्टिस गवई ने कहा, नागपुर में मैंने एक ऐसा मामला देखा था, जिसमें एक लड़का अमेरिका गया था और उसे शादी किए बिना ही 50 लाख रुपये देने पड़े थे. वो एक दिन भी साथ नहीं रहा था. मैं खुले तौर पर कहता हूं कि घरेलू हिंसा और धारा 498्र का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जाता है.हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब अदालत ने 498्र के दुरुपयोग पर सवाल उठाए हैं. पिछले महीने ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने 498्र के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि दादा-दादी और बिस्तर पर पड़े लोगों को भी फंसाया जा रहा है. वहीं, मई में केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि पत्नियां अक्सर बदला लेने के लिए पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ ऐसे मामले दर्ज करवा देती हैं.2022 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर कुछ निर्देश जारी किए थे. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अगर किसी महिला के साथ क्रूरता हुई है तो उसे क्रूरता करने वाले व्यक्तियों के बारे में भी बताना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीडि़त महिला को साफ बताना होगा कि किस समय और किस दिन उसके साथ पति और उसके ससुराल वालों ने किस तरह की क्रूरता की है. केवल ये कह देने से कि उसके साथ क्रूरता हुई है, इससे धारा 498 A का मामला नहीं बनता है.धारा 498्र, अब बीएनएस की धारा 85 और 861 जुलाई से आईपीसी की जगह बीएनएस लागू हो गई है. आईपीसी की धारा 498्र की जगह बीएनएस में धारा 85 और 86 ने ले ली है. हालांकि, इसके प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं हुआ है.अगर किसी शादीशुदा महिला पर उसके पति या उसके ससुराल वालों की ओर से किसी तरह की क्रूरता की जा रही है तो बीएनएस की धारा 85 के तहत ये अपराध होगा. क्रूरता, शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की हो सकती है. शारीरिक क्रूरता में महिला से मारपीट करना शामिल है. वहीं, मानसिक क्रूरता में उसे प्रताडि़त करना, ताने मारना, तंग करना जैसे बर्ताव शामिल हैं. अगर जानबूझकर कोई ऐसा काम किया जाता है, जो पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाए, उसे भी क्रूरता माना जाता है. इसके अलावा पत्नी या उससे जुड़े किसी व्यक्ति से गैरकानूनी तरीके से किसी संपत्ति की मांग करना भी क्रूरता मानी जाती है.इस धारा के तहत, दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की जेल हो सकती है. इसके साथ ही दोषियों पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है. घरेलू हिंसा कानूनएक महिला को घर के भीतर होने वाली हिंसा से बचाने के लिए 2005 में ये कानून लाया गया था. इस कानून के दायरे में वो सभी महिलाएं आती हैं, जो किसी साझे घर में मां, बहन, पत्नी, बेटी या विधवा हो सकती है. लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को भी इसमें शामिल किया गया है.इतना ही नहीं, एक शादीशुदा महिला को दहेज के लिए भी प्रताडि़त नहीं किया जा सकता है. साथ ही महिला या उनसे संबंध रखने वाले लोगों के साथ गाली-गलौच नहीं की जा सकती और न ही उन्हें डराया या धमकाया जा सकता है.इस कानून के तहत एक महिला ही शिकायत कर सकती है. इस कानून की धारा दो ए में एक महिला को ही पीडि़त व्यक्ति माना गया है. यानी, कोई भी पुरुष इस कानून के तहत किसी महिला के खिलाफ शिकायत नहीं कर सकता.क्यों उठते हैं सवाल?इसी साल मई में तलाक से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पति के खिलाफ दर्ज 498्र के केस को निरस्त करने का आदेश दिया था. दरअसल, पति ने पत्नी से तलाक की अर्जी दाखिल की थी. इसके बाद पत्नी ने पति के खिलाफ धारा 498्र समेत कई धाराओं के तहत केस दर्ज करवा दिया था. हाईकोर्ट ने धारा 498्र के तहत दर्ज केस को रद्द करने से मना कर दिया था. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, घरेलू हिंसा कानून और धारा 498्र में कन्विक्शन रेट सिर्फ 18 प्रतिशत है. यानी, बाकी मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया जाता है.

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