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महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक भाषा का कोर्ट में कोई स्थान नहीं

सीजेआई चंद्रचूड़ बोले- कानून अंधा नहीं है

नई दिल्ली। सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि सभी प्रकार की अपमानजनक भाषा, विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ का कोर्ट में कोई स्थान नहीं है, उन्होंने कहा कि असंवेदनशील शब्द रूढि़वादिता को बढ़ावा दे सकते हैं और महिलाओं और हाशिए के समुदायों को असंगत रूप से प्रभावित कर सकते हैं। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने प्रशासनिक प्रतिष्ठान के कुछ सदस्यों द्वारा महिलाओं के प्रति अपमानजनक भाषा के प्रयोग के बारे में महिला न्यायिक अधिकारियों की शिकायतों का उल्लेख किया।पणजी के निकट उत्तरी गोवा जिला न्यायालय परिसर के उद्घाटन के अवसर पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, हमें न्याय तक वास्तविक लोकतांत्रिक पहुंच के लिए सभी बाधाओं को दूर करने के लिए सक्रिय रूप से काम करना चाहिए।सीजेआई ने कहा, जब हम अपने न्यायालयों में समावेशिता के लिए प्रयास करते हैं, तो हम जिस भाषा का उपयोग करते हैं, उसमें हमारे लोकाचार को प्रतिबिंबित करना चाहिए। हमें शब्दों के चयन में सतर्क रहना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हमारी भाषा न केवल सटीक हो, बल्कि सम्मानजनक और समावेशी भी हो। उन्होंने कहा कि असंवेदनशील या खारिज करने वाली भाषा रूढि़वादिता को बढ़ावा दे सकती है और महिलाओं तथा हाशिए पर पड़े समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।चीफ जस्टिस ने कहा कि अक्सर मैं महिला न्यायिक अधिकारियों से यह शिकायत सुनता हूं कि प्रशासनिक प्रतिष्ठान के कुछ सदस्य महिलाओं के प्रति अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि सभी प्रकार की अपमानजनक भाषा, विशेषकर महिलाओं के प्रति, उनके लिए हमारे न्यायालयों में कोई स्थान नहीं होना चाहिए।मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालतों में प्रयुक्त भाषा में समावेशिता, सम्मान और सशक्तिकरण झलकना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसमें हमारे कानूनी शब्दकोष की पुन: जांच करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि यह लिंग, जाति या सामाजिक आर्थिक स्थिति के आधार पर रूढि़वादिता को मजबूत न करे।सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लिंग पर एक पुस्तिका तैयार की है, ताकि लोगों को हमारी अदालतों में इस्तेमाल की जाने वाली लैंगिक रूढिय़ों के बारे में जागरूक किया जा सके। उन्होंने आगे कहा कि पीठ के सदस्यों, विशेषकर जिला स्तर के न्यायिक अधिकारियों को कानूनी विमर्श को उन्नत बनाने के मूल नियम को याद रखना चाहिए। चंद्रचूड़ ने कहा कि वादी विश्वास और असुरक्षा की भावना के साथ अदालत के समक्ष आते हैं। अदालत के भीतर की प्रथाओं को गरिमा, अक्सर विश्वास को कम करने के बजाय कानूनी प्रवचन को ऊपर उठाना चाहिएज् व्यक्ति का भविष्य आपके हाथों में है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि समानता ऐतिहासिक नुकसान, विशेषाधिकारों और कुछ समुदायों की समझ में निहित है। उन्होंने कहा कि हमारे न्यायालयों के दरवाजे से आने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुभव, संघर्ष और आशाएं लेकर आता है।

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