निर्माण कार्यों में गुणवत्ता मानकों की अनदेखी से शहर में हुआ सड़क नाली और नाले का निर्माण


सतना। शहर की नगर निगम सीमा क्षेत्र में चल रहे निर्माण कार्यों में इन दिनों निर्माण कार्यों में जमकर घाल-मेल चल रहा है जिसके चलते शहर में सड़क नाली नाली आदि के गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं वही ठेकेदार को लाभ पहुंचाने कंसलटेंट और अधिकारियों ने डिजाइन के विरुद्ध सीमेंट उपयोग करवाकर कमजोर करवा दी स्मार्ट सिटी मिशन से बनी सीसी रोड। शहर की सीसी रोड उच्च गुणवत्ता की बने इसलिए सीमेंट–कांक्रीट मिक्स (मसाला) की जो डिजाइन तैयार को गई उसमें opc (आर्डिनरी पोर्टलैंड सीमेंट) को चुना गया। इसकी वजह थी कि यह जल्दी सेट (7दिन) होती है और निर्माण को उच्च प्राथमिक शक्ति देती है। लेकिन ठेकेदार पीपीएस बिल्डर्स ने जब काम शुरू किया तो ops से 40 रुपए सस्ती पीपीसी सीमेंट लगाया। जबकि इसका सेटिंग टाइम 15 दिन होता है, अर्थात 15 दिन तराई करनी पड़ती है, अन्यथा मजबूती नहीं आती और प्राथमिक शक्ति भी नहीं होती। पीपीसी सीमेंट का उपयोग करने से ठेकेदार को फायदा हुआ लेकिन शहर की सीसी रोड गुणवत्ताहीन और कमजोर बनी।सीमेंट बदल कर कमाए 63 लाख की सीमेंट बदलने से पीपीएस बिल्डर्स को लाखो का फायदा हुआ।
इसे ऐसे समझें, 100 मीटर की सीसी रोड बनाने में लगभग 790 बोरी सीमेंट लगती है। पीपीसी सीमेंट ओपीसी से 40 रुपए सस्ती है, लिहाजा 100 मीटर में 31600 रुपए का फायदा हुआ। इस तरह 1किमी रोड में 3.16 लाख रुपए का फायदा हुआ। पीपीएस ने लगभग 20 किमी में ये खेल किया, इस हिसाब से 63 लाख रुपए बचा लिए। *63 लाख के कमीशन में शहर को दिलवा दी घटिया सड़क*ठेकेदार को 63 लाख की बैठे बैठे की कमाई के एवज में टाटा कंसलटेंसी के इंजीनियर और निगम के अधिकारियों ने मोटा कमीशन लेकर इस गुणवत्ता हीन काम को पास कर दिया। अब वही सड़क उखड़ रही हैं। निर्माण क्षेत्र से जुड़े जानकार लोगों की माने तो इन दोनों निगम क्षेत्र में हद दर्जे का घटिया निर्माण हो रहा है, निगम के जिम्मेदार भी दिखावे के लिए सिर्फ नौटंकी कर रहे हैं। वास्तविकता तो ये है कि पूरे कुएं में ही भांग घुली हुई है। निगम के इंजीनियर – कुर्सीदार जहां ठेकेदारों के साथ पार्टनरशिप में काम कर रहे हैं वहीं पक्ष – विपक्ष के कुछ लोग भी उसमे अन्य तरह से या तो हिस्सेदारी कर रहे हैं या फिर अपने किसी नजदीकी को पेटी में काम दिला कर उपकृत हो रहे हैं। स्पीकर खुद भी घटिया निर्माण पर ऐतराज जता चुके हैं, पत्र लिख चुके हैं। वे खुद पुराने ठेकेदार है लिहाजा निर्माण कार्य से जुड़े हर तौर तरीके से वाकिफ हैं। उन्हें ठेकेदारों के हर पैंतरे और निगम के अमले की हर करतूत का बखूबी ज्ञान है। ऐसे में स्पीकर की आपत्ति यहां हो रहे भ्रष्टाचार की कहानी खुद ब खुद बयान करती है। गहिरा नाला के पास यादव धर्मकांटा से उतैली होते हुए आवासीय विद्यापीठ और बाईपास को जोड़ने के लिए बनाई गई सीसी रोड की भी धज्जियां उड़ गई हैं। उस सड़क ने स्लरी छोड़ दी है। शहर की ऐसी सभी घटिया सड़को को तुड़वाकर ठेका कंपनी के रिस्क एंड कास्ट पर दोबारा बनवाया जाना चाहिए। कई महीने पहले ओवर ब्रिज के सिविल लाइन एंड पर जोशी की बगिया और मनसुख पटेल की जमीन की तरफ से निकलने वाली सर्विस लेन को ठेकेदार अमित पांडेय बजरंगी से तुड़वा कर दोबारा बनवाया गया था। जब तक उसने ये काम दोबारा नहीं कर दिया तब तक उसका पेमेंट भी होल्ड रखा गया था। वैसे ही नियम कायदे पीपीएस बिल्डर्स के लिए क्यों नहीं अपनाए जा सकते ? तत्कालीन निगमायुक्त रहे प्रवीण सिंह और अमनवीर सिंह इस तरह के मामलों में त्वरित संज्ञान लेते हुए सड़क उखड़वा कर नए सिरे से बनवाई थीं। अब स्थिति ये है 25 साल चलने वाली ये सड़के इन्हीं महापौर के कार्यकाल में बनेंगी और इन्हीं के कार्यकाल में उधड़ जाएंगी। बाकी स्मार्ट सिटी भ्रष्टाचार की पाठशाला बन चुका है। इधर पार्षद जांच की मांग के पत्र पार्षदों के भी आने लग गए हैं